भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन
प्रस्तावना
19 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत में आधुनिक उद्योग धंधों के विकास के साथ श्रमिकों के रोजगार में भी वृद्धि हुई | लेकिन पुरे विश्व के श्रमिकों की तरह ही भारतीय श्रमिकों को कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा |इन कठिनाइयों में – कम मजदूरी , कार्य के लंबे घंटे ,कारखानों में आधारभूत सुविधाओं का अभाव आदि प्रमुख थे | भारतीय श्रमिक वर्ग को उपनिवेशवादी राजनितिक शासन तथा विदेशी एवं भारतीय पूंजीपतियों के शोषण का सामना करना पड़ा | इन परिस्थितियों के कारन भारतीय श्रमिक आंदोलन अनिवार्य रूप से राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक हिस्सा बन गया |
प्रारंभिक प्रयास
प्रारंभिक राष्ट्रवादी विशेषकर उदारवादी —
- भारतीय श्रमिकों की मांगों के प्रति उदासीन थे |
- ब्रिटिश स्वामित्व वाले कारखानों में कार्यरत श्रमिकों और भारतीय स्वामित्व वाले कारखानों में कार्यरत श्रमिकों को अलग अलग मानते थे |
- वे वर्गीय आधार पर आंदोलन में विभाजन के पक्षधर नही थे |
- प्रारंभिक राष्ट्रवादियों ने कारखाना अधिनियम 1881 एवं 1891 का कोई समर्थन नही किया |
शुरुआती दौड़ के कुछ महत्वपूर्ण प्रयास निम्न थे
- 1870 में शशीपद बनर्जी ने एक श्रमिक क्लब की स्थापना तथा भारत ‘श्रमजीवी’ नमक समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया |
- 1878 में सोराबजी शापूर्जी बंगाली ने श्रमिकों को कार्य की बेहतर दशाएं उपलब्ध करने के लिए एक विधेयक प्रस्तुत किया,जिसे बाद में बम्बई विधान परिषद ने पारित कर दिया |
- 1880 में नारायण मेघाजी लोखंडे ने ‘दीनबंधु’ नामक समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया तथा बम्बई मिल एवं मिलहैड एसोसिएशन की स्थापना की |
- 1899 में ग्रेट इंडियन पेनिन्सुलर की प्रथम हड़ताल आयोजित की गई |तिलक ने अपने समाचार पत्रों मराठा एवं केसरी के द्वारा हड़ताल का भरपूर समर्थन किया |
- स्वदेशी आंदोलन के दौरान श्रमिकों ने विस्तृत राजनितिक गतिविधियों में भागेदारी निभाई |
- सुब्रह्मण्यम अय्यर एवं चिदंबरम पिल्लई के नेतृत्व में तूतीकोरिन एवं तिरुनेलबेल्लि में हड़तालों का आयोजन किया गया |
- उस समय का सबसे बड़ा हड़ताल का आयोजन तब किया गया जब बाल गंगाधर तिलक को गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया गया |
प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत ट्रेड यूनियन आंदोलन
प्रथम विश्व युद्ध के दिनों एवं उसकी समाप्ति के पश्चात् वस्तुओं के मूल्य में अत्यधिक वृद्धि हुई जिससे निर्यात को बढ़ावा मिला और व्यपारियों को अत्यधिक मुनाफा हुआ लेकिन श्रमिकों की मज़दूरी न्यूनतम ही रही |
यही वो वक़्त था जब श्रमिकों को व्यापार संघो में संगठित किए जाने की आवश्यकता महसूस किया गया |कुछ अंतरराष्ट्रीय घटनाओं जैसे सोवियत संघ की स्थापना ,कम्युनिस्ट की स्थापना तथा अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना जैसी घटनाओं से भारतीय श्रमिक वर्ग में एक नई चेतना का प्रसार हुआ |
यही वो वक़्त था जब श्रमिकों को व्यापार संघो में संगठित किए जाने की आवश्यकता महसूस किया गया |कुछ अंतरराष्ट्रीय घटनाओं जैसे सोवियत संघ की स्थापना ,कम्युनिस्ट की स्थापना तथा अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना जैसी घटनाओं से भारतीय श्रमिक वर्ग में एक नई चेतना का प्रसार हुआ |
AITUC की स्थापना 1920 -
1920 में आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की गई | लाल लाजपत रॉय एटक के प्रथम अध्यक्ष तथा दीवान चमनलाल इसके प्रथम महासचिव चुने गए | लाजपत रॉय ने पूंजीवाद को साम्राज्यवाद से जोड़ने का प्रयास किया |उनके अनुसार साम्राज्यवाद एवं सैन्यवाद , पूंजीवाद की जुड़वा संताने हैं |
एटक से जुड़े कुछ प्रमुख नेता थे सी आर दास , जवाहरलाल नेहरू , सुभाषचंद्र बोस , सी एफ एंड्रयूज ,जे एम सेनगुप्ता , वी वी गिरी , सत्यमूर्ति , सरोजनी नायडू आदि |
एटक से जुड़े कुछ प्रमुख नेता थे सी आर दास , जवाहरलाल नेहरू , सुभाषचंद्र बोस , सी एफ एंड्रयूज ,जे एम सेनगुप्ता , वी वी गिरी , सत्यमूर्ति , सरोजनी नायडू आदि |
ट्रेड यूनियन अधिनियम 1926
इस अधिनियम में निम्न बातें कहीं गई —
- व्यापार संघों की गतिविधियों के पंजीकरण एवं नियमन संबंधी कानूनों की व्यख्या की गई |
- व्यापार संघों की गतिविधियां को नागरिक एवं आपराधिक गतिविधियों की परिधि से बाहर माना गया |
श्रमिक विवाद अधिनियम 1929
इस अधिनियम में निम्न बातें की गई —
- श्रमिक विवादों के समाधान हेतु जाँच एवं परामर्श आयोग की स्थापना को अनिवार्य बना दिया गया |
- रेलवे , डाक ,पानी एवं विधुत संभरण जैसी सार्वजनिक सेवाओं में उस समय तक हड़ताल नही की जा सकती जबतक प्रत्येक श्रमिक लिखित रूप से एक मास पूर्व इसकी सुचना प्रशासन को न दे दे |
मेरठ षड्यंत्र केस
मार्च 1929 में सरकार ने 31 श्रमिक नेताओं को बंदी बना लिया तथा मेरठ लेकर उन पर मुकदमा चलाया गया | इन पर आरोप लगाया गया की ये सम्राट को भारत की प्रभुसत्ता से वंचित करने का प्रयास कर रहे थे | इन नेताओं में प्रमुख थे – मुजफ्फर अहमद ,एस ए डांगे,जोगलेकर , फिलिप स्प्राट ,वेन ब्रेडली,शौकत उस्मानी आदि |
1931 में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस का विभाजन हो गया |दक्षिण पंथी मध्यममार्गीय नेता एम एन जोशी , वी वी गिरी और मृणाल क्रांति बोस ने एटक से अलग होकर भारतीय ट्रेड यूनियन संघ की स्थापना की |
1931 में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस का विभाजन हो गया |दक्षिण पंथी मध्यममार्गीय नेता एम एन जोशी , वी वी गिरी और मृणाल क्रांति बोस ने एटक से अलग होकर भारतीय ट्रेड यूनियन संघ की स्थापना की |
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